विद्वानों के अनुसार भारत काशी में सूर्यग्रहण का आरम्भ प्रातः 10 बजकर 31 मिनट ,मध्य 12:18 बजे ई मोक्ष दोपहर 2 बजकर 4 मिनट तक रहेगा। भारत के अतिरिक्त यह खंडग्रास सूर्यग्रहण विदेश के कुछ क्षेत्रों में भी दिखाई देगा। सूर्यग्रहण का सूतक 12 घंटे पहले लग जाता है। अतः इस सूर्यग्रहण का सूतक 20 जून को रात में रात 9.30 आरम्भ हो जाएगा जो कि सूर्यग्रहण ग्रहण के समाप्त होने तक रहेगा।
जैसा की आप सभी जानते हैं कि ग्रहण काल में कुछ कार्यों को करने की मनाही होती है। क्योंकि इसका प्रभाव मनुष्य के जीवन पर नकारात्मक पड़ता है और हमारे मन में अनेक प्रकार के प्रश्न रहते हैं कि क्या करें क्या न करें तो आइए जानते हैं ग्रहण संबंधी शंकाएं और उनके समाधान
🔹शंका : ग्रहण के सूतक काल में सोना चाहिए या नहीं ?
🔹समाधान : सो सकते हैं लेकिन चूंकि सोकर तुरंत उठने के बाद जल-पान, लघुशंका-शौच आदि की स्वाभाविक प्रवृत्ति की आवश्यकता पड़ती है अतः ग्रहण प्रारम्भ होने के करीब 4 घंटें पहले उठ जाना चाहिए जिससे लघुशंका-शौच आदि की आवश्यकता होने पर इनसे निवृत्त हो सके और ग्रहणकाल में समस्या न आये ।
🔹शंका : सूतक काल में खाने का त्याग करना है तो पानी पी सकते हैं या नहीं ?
🔹समाधान : इसमें अलग-अलग विचारकों का अलग-अलग मत है । कुछ जानकार लोगों का कहना है कि चूंकि सूतक का समय-अवधि अधिक होने से 12 घंटें का सूतक एवं लगभग 3.5 घंटें ग्रहण का समय टोटल 15.5 घंटें बिना जल-पान का रहना सामान्य तौर पर सबके लिए सम्भव नहीं है अतः सूतक काल में सूतक लगने के पूर्व जल में तिल या कुशा डालकर रखना चाहिए और सूतक के दौरान प्यास लगने पर वही जल पीना चाहिए । इस बात का विशेष ध्यान रखें कि जल-पान के बाद 2 से 4 घंटों के अंदर लघुशंका (पेशाब) की प्रवृत्ति होती है अतः ग्रहण प्रारम्भ होने के 4 घंटे पूर्व से जलपान करने से भी बचना चाहिए नहीं तो ग्रहण के दौरान समस्या आती है।
🔹शंका : सूतक में स्नान, पेशाब & शौच कर सकते हैं या नहीं ?
🔹समाधान : कर सकते हैं ।
🔹शंका : ग्रहणकाल में धूप, दीप, अगरबत्ती, कपूर जला सकते हैं या नहीं ?
🔹समाधान : जला सकते हैं ।
🔹शंका : ब्राह्मीघृत कब, कैसे एवं उसकी मात्रा एक व्यक्ति के लिए कितनी लेनी है ?
🔹समाधान : ग्रहणकाल पूरा होने पर स्नान आदि से शुद्ध होने के बाद 6 से 12 ग्राम घृत का सेवन करके ऊपर से गर्मपानी पी लेना चाहिए । शेष बचा ब्राह्मी घृत प्रतिदिन सुबह खाली पेट इसी विधि से 6 से 12 ग्राम ले सकते हैं ।
🔹शंका : ग्रहणकाल के दौरान अध्ययन कर सकते हैं क्या ?
🔹समाधान : बिल्कुल नहीं । नारद पुराण के अनुसार - ‘‘चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण के दिन, उत्तरायण और दक्षिणायन प्रारम्भ होने के दिन कभी अध्ययन न करे । अनध्याय (न पढ़ने के दिनों में) के इन सब समयों में जो अध्ययन करते हैं, उन मूढ़ पुरुषों की संतति, बुद्धि, यश, लक्ष्मी, आयु, बल तथा आरोग्य का साक्षात् यमराज नाश करते हैं ।’’
इसके अतिरिक्त ज्योतिर्विद एवं वास्तुविदों पं दिवाकर अनुसार गर्भवती महिलाएं बालों पर कोई पिन ना लगाएं। इस दौरान महिलाओं को अपने पास कोई भी नुकीली चीज नहीं रखनी चाहिए। ग्रहणकाल में गले में तुलसी की माला या चोटी में कुश धारण कर लें। ग्रहण के समय गर्भवती चाकू, कैंची, पेन, पैन्सिल जैसी नुकीली चीजों का प्रयोग न करें। सूई का उपयोग अत्यंत हानिकारक है।किसी भी लोहे की वस्तु, दरवाजे की कुंडी आदि को स्पर्श न करें, न खोले और न ही बंद करें । ग्रहणकाल में सिलाई, बुनाई, सब्जी काटना या घर से बाहर निकलना व यात्रा करना सही नहीं है।
गर्भवती ग्रहणकाल में अपनी गोद में एक सूखा हुआ छोटा नारियल (श्रीफल) लेकर बैठे और ग्रहण पूर्ण होने पर उस नारियल को नदी अथवा अग्नि में समर्पित कर दे। ग्रहण से पूर्व देशी गाय के गोबर व तुलसी-पत्तों का रस (रस न मिलने पर तुलसी-अर्क का उपयोग कर सकते हैं) का गोलाई से पेट पर लेप करें । देशी गाय का गोबर न उपलब्ध हो तो गेरू मिट्टी का लेप कर सकती हैं।
किसी भी नियम को स्थापित करने के पीछे मुख्य रूप से दो बातें प्रभावी होती हैं, पहली-भय और दूसरी-लोभ; लालच। इन दो बातों को विधिवत् प्रचारित कर आप किसी भी नियम को समाज में बड़ी सुगमता से स्थापित कर सकते हैं। धर्म में इन दोनों बातों का समावेश होता है। अत: हमारे समाज के तत्कालीन नीति-निर्धारकों ने वैज्ञानिक कारणों से होने वाले दुष्प्रभावों से जन-सामान्य को बचाने के उद्देश्य से अधिकतर धर्म का सहारा लिया।
जिससे यह दुष्प्रभाव आम जन को प्रभावित ना कर सकें किन्तु आज के सूचना और प्रौद्योगिकी वाले युग में जब हम विज्ञान से भलीभांति परिचित हैं तब इन बातों को समझाने हेतु धर्म का आधार लेकर आसानी से ग्राह्य ना हो सकने वाली बेतुकी दलीलें देना सर्वथा अनुचित सा प्रतीत होता है।आज की युवा पीढ़ी रुढ़बद्ध नियमों को स्वीकार करने में झिझकती है। यही बात ग्रहण से सन्दर्भ में शत-प्रतिशत लागू होती है। आज की पीढ़ी को सूतक के स्थान पर सीधे-सीधे यह बताना अधिक कारगर है कि ग्रहण के दौरान चन्द्र व सूर्य से कुछ ऐसी किरणें उत्सर्जित होती हैं जिनके सम्पर्क में आ जाने से हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और यदि ना चाहते हुए भी इन किरणों से सम्पर्क हो जाए तो स्नान करके इनके दुष्प्रभाव को समाप्त कर देना चाहिए। वर्तमान समय में ग्रहण का यही अर्थ अधिक स्वीकार व मान्य प्रतीत होता है।
अतः आप चाहे धार्मिक विचारों को समझें या वैज्ञानिक विचारों को परंतु सावधान रहें और ग्रहण के दुशप्रभावों से बचें।
🚩जय श्री हरि 🚩
No comments:
Post a Comment