धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु को समर्पित एकादशी व्रत रखने से सुख-समृद्धि और वैभव की प्राप्ति होती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाले एकादशी को पापमोचिनी एकादशी कहा जाता है। कहते हैं कि पापमोचिनी एकादशी व्रत रखने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पापमोचिनी एकादशी महत्व- शास्त्रों में बताया गया है कि
पापमोचिनी एकादशी व्रत को करने से ग्रहों का अशुभ प्रभाव दूर किया जा सकता
है। इसके साथ ही चंद्रमा भी जातक को शुभ फल प्रदान करता है। मान्यता है कि
भगवान विष्णु को एकादशी का दिन प्रिय है। ऐसे में इस दिन भगवान विष्णु की
विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए। कहते हैं कि इस व्रत को रखने वालों को
संसार के सभी सुख प्राप्त होते हैं।
पापमोचिनी एकादशी व्रत कथा- शास्त्रों में वर्णित है कि भगवान कृष्ण ने स्वंय पांडु पुत्र अर्जुन को पापमोचिनी एकादशी व्रत का महत्व बताया था। कहा जाता है राजा मांधाता ने लोमश ऋषि से जब पूछा कि अनजाने में हुए पापों से मुक्ति कैसे हासिल की जाती है? तब लोमश ऋषि ने पापमोचनी एकादशी व्रत का जिक्र करते हुए राजा को एक पौराणिक कथा सुनाई थी। कथा के अनुसार, एक बार च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी वन में तपस्या कर रहे थे। उस समय मंजुघोषा नाम की अप्सरा वहां से गुजर रही थी। तभी उस अप्सरा की नजर मेधावी पर पड़ी और वह मेधावी पर मोहित हो गईं। इसके बाद अप्सरा ने मेधावी को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए ढेरों जतन किए।
मंजुघोषा को ऐसा करते देख कामदेव भी उनकी मदद करने के लिए आ गए। इसके बाद मेधावी मंजुघोषा की ओर आकर्षित हो गए और वह भगवान शिव की तपस्या करना ही भूल गए। समय बीतने के बाद मेधावी को जब अपनी गलती का एहसास हुआ तो उन्होंने मंजुघोषा को दोषी मानते हुए उन्हें पिशाचिनी होने का श्राप दे दिया। जिससे अप्सरा बेहद ही दुखी हुई।
अप्सरा ने तुरंत अपनी गलती की क्षमा मांगी। अप्सरा की क्षमा याचना सुनकर मेधावी ने मंजुघोषा को चैत्र मास की पापमोचनी एकादशी के बारे में बताया। मंजुघोषा ने मेधावी के कहे अनुसार विधिपूर्वक पापमोचनी एकादशी का व्रत किया। पापमोचिनी एकादशी व्रत के पुण्य प्रभाव से उसे सभी पापों से मुक्ति मिल गई। इस व्रत के प्रभाव से मंजुघोषा फिर से अप्सरा बन गई और स्वर्ग में वापस चली गई। मंजुघोषा के बाद मेधावी ने भी पापमोचनी एकादशी का व्रत किया और अपने पापों को दूर कर अपना खोया हुआ तेज पाया था।
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