किसानों (Kisan) ने ज्ञापन में विभिन्न मुद्दों को उठाया है. किसानों ने कहा है कि माननीय राष्ट्रपति जी, हम भारत के किसान बहुत दुख और रोष के साथ अपने देश के मुखिया को यह चिट्ठी लिख रहे हैं.
किसान आंदोलन के आज यानि 26 जून (26 June) को 7 महीने पूरे हो गए. 26 जून को किसानों ने खेती बचाओ और लोकतंत्र बचाओ के रूप में मनाया. साथ ही राज्यों के राज्यपालोंं को राष्ट्रपति के नाम एक ज्ञापन सौंपा. किसानों ने ज्ञापन में विभिन्न मुद्दों को उठाया है. किसानों ने कहा है कि माननीय राष्ट्रपति जी, हम भारत के किसान बहुत दुख और रोष के साथ अपने देश के मुखिया को यह चिट्ठी लिख रहे हैं. आज 26 जून को अपने मोर्चे के सात महीने पूरे होने पर खेती बचाने और इमरजेंसी दिवस (Emergency Day) पर लोकतंत्र बचाने की दोहरी चुनौती को सामने रखते हुए हर प्रदेश से हम यह रोषपत्र आप तक पहुंचा रहे हैं. देश हमें अन्नदाता कहता है. पिछले 74 साल में हमने अपनी इस जिम्मेवारी निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. जब देश आजाद हुआ तब हम 33 करोड़ देशवासियों का पेट भरते थे. आज उतनी ही जमीन के सहारे हम 140 करोड़ जनता को भोजन देते हैं. कोरोना महामारी के दौरान जब देश की बाकी अर्थव्यवस्था ठप्प हो गई, तब भी हमने अपनी जान की परवाह किए बिना रिकॉर्ड उत्पादन किया. खाद्यान्न के भंडार खाली नहीं होने दिए !
लेकिन इसके बदले आप की मोहर से चलने वाली भारत सरकार ने हमें दिए तीन ऐसे काले कानून जो हमारी नस्लों और फसलों को बर्बाद कर देंगे, जो खेती को हमारे हाथ से छीनकर कंपनियों की मुठ्ठी में सौंप देंगे. ऊपर से पराली जलाने पर दंड और बिजली कानून के मसौदे की तलवार भी हमारे सर पर लटका दी. खेती के तीनों कानून असंवैधानिक हैं, क्योंकि केंद्र सरकार को कृषि मंडी के बारे में कानून बनाने का अधिकार ही नहीं है. यह कानून अलोकतांत्रिक भी हैं. इन्हें बनाने से पहले किसानों से कोई राय मशवरा नहीं किया गया. इन कानूनों को बिना किसी जरूरत के अध्यादेश के माध्यम से चोर दरवाजे से लागू किया गया. इन्हें संसदीय समितियों के पास भेज कर जरूरी चर्चा नहीं हुई. और तो और इन्हें पास करते वक्त राज्यसभा में वोटिंग तक नहीं करवाई गई.
आपके पद की गरिमा को कम किया
हमने उम्मीद की थी कि बाबासाहेब द्वारा बनाए संविधान के पहले
सिपाही होने के नाते आप ऐसे असंवैधानिक, अलोकतांत्रिक और किसान विरोधी
कानूनों पर हस्ताक्षर करने से इंकार कर देंगे. लेकिन आपने ऐसा नहीं किया.
आप जानते हैं कि हम सरकार से दान नहीं मांगते, बस अपनी मेहनत का सही दाम
मांगते हैं. फसल के दाम में किसान की लूट के कारण खेती घाटे का सौदा बन गई.
किसान कर्ज में डूब गए और पिछले 30 साल में 4 लाख से अधिक किसानों को
आत्महत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा. इसलिए हमने बस इतनी सी मांग रखी कि
किसान को स्वामीनाथन कमीशन के फार्मूले (सी2 50%) के हिसाब से न्यूनतम
समर्थन मूल्य पर अपनी पूरी फसल की खरीद की गारंटी मिल जाए. इस पर अपना वादा
पूरा करने की बजाय सरकार ने "दुगनी आय" जैसे झूठे जुमले आपके अभिभाषण में
डालकर आपके पद की गरिमा को कम किया.
आप ने सब कुछ देखा-सुना होगा, मगर आप चुप रहे
राष्ट्रपति महोदय, पिछले सात महीने से भारत सरकार ने किसान आंदोलन
को तोड़ने के लिए के लोकतंत्र की हर मर्यादा की धज्जियां उड़ाई हैं. देश
की राजधानी में अपनी आवाज सुनाने के लिए आ रहे अन्नदाता का स्वागत करने के
लिए इस सरकार ने हमारे रास्ते में पत्थर लगाए, सड़कें खोदीं, कीलें बिछाई,
आंसू गैस छोड़ी, वाटर कैनन चलाए, झूठे मुकदमे बनाए और हमारे साथियों को
जेल में बंद रखा. किसान के मन की बात सुनने की बजाय उन्हें कुर्सी के मन की
बात सुनाई. बातचीत की रस्म अदायगी की, फर्जी किसान संगठनों के जरिए आंदोलन
को तोड़ने की कोशिश की. आंदोलनकारी किसानों को कभी दलाल, कभी आतंकवादी,
कभी खालिस्तानी, कभी परजीवी और कभी कोरोना स्प्रेडर कहा. मीडिया को डरा,
धमका और लालच देकर किसान आंदोलन को बदनाम करने का अभियान चलाया गया.
किसानों की आवाज उठाने वाले सोशल मीडिया एक्टिविस्ट के खिलाफ बदले की
कार्यवाही करवाई गई. हमारे 500 से ज्यादा साथी इस आंदोलन में शहीद हो गए.
आप ने सब कुछ देखा-सुना होगा, मगर आप चुप रहे.
पिछले सात महीने में
हमने जो कुछ देखा है वो हमे आज से 46 साल पहले लादी गई इमरजेंसी की याद
दिलाता है. आज सिर्फ किसान आंदोलन ही नहीं, मजदूर आंदोलन, विद्यार्थी-युवा
और महिला आंदोलन, अल्पसंख्यक समाज और दलित, आदिवासी समाज के आंदोलन का भी
दमन हो रहा है. इमरजेंसी की तरह आज भी अनेक सच्चे देशभक्त बिना किसी अपराध
के जेलों में बंद हैं. विरोधियों का मुंह बंद रखने के लिए यूएपीए जैसे
खतरनाक कानूनों का दुरुपयोग हो रहा है. मीडिया पर डर का पहरा है,
न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर हमला हो रहा है. मानवाधिकारों का मखौल बन
चुका है. बिना इमरजेंसी घोषित किए ही हर रोज लोकतंत्र का गला घोंटा जा रहा
है. ऐसे में संवैधानिक व्यवस्था के मुखिया के रूप में आपकी सबसे बड़ी
जिम्मेवारी बनती है.
संविधान बचाने की शपथ ली है
इसलिए हम इस चिट्ठी के माध्यम से देश के करोड़ों किसान परिवारों
का रोष देश रूपी परिवार के मुखिया तक पहुंचाना चाहते हैं. हम आपसे उम्मीद
करते हैं की आप केंद्र सरकार को यह निर्देश दें कि वह किसानों की इन
न्यायसंगत मांगों को तुरंत स्वीकार करें. तीनों किसान विरोधी कानूनों को
रद्द करे और एमएसपी (सी2 50%) पर खरीद की कानूनी गारंटी दें. माननीय
राष्ट्रपति जी, आज से संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले चल रहा यह ऐतिहासिक
किसान आंदोलन खेती ही नहीं, देश में लोकतंत्र को बचाने का आंदोलन भी बन
गया है. हम उम्मीद करते हैं कि इस पवित्र मुहिम में हमे आपका पूरा समर्थन
मिलेगा. क्योंकि, आपने सरकार नहीं, संविधान बचाने की शपथ ली है.
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